भारतवर्ष के आजादी की बात हो और अमर वीर जवान शहीद मंगल पांडे की चर्चा ना हो ऐसा संभव नहीं । शहीद मंगल पांडे भारत की पहली स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत थे । उनके द्वारा छेड़ी गई क्रांति की ज्वाला से अंग्रेजी शासन बुरी तरह हिल गया था । लेकिन अंग्रेजों ने इस क्रांति को दबा दिया पर मंगल पांडे की कुर्बानी ने देश के लोगों में जो क्रांति के बीज बोए उसने अंग्रेजी हुकुमत को सौ साल के भीतर ही हिंदुस्तान से उखाड़ फेका ।
शहीद मंगल पांडे ईस्ट इंडिया कंपनी के 34वीं बंगाल Native Infantry में एक सिपाही थे । सन 1857 की क्रांति के समय शहीद मंगल पांडे ने एक ऐसे विद्रोह को जन्म दिया जो जंगल में आग की तरह पूरे हिंदुस्तान में फैल गया । और यह क्रांति लगातार आगे बढ़ती गयी । अंग्रेजी शासन ने उन्हें गद्दार घोषित कर दिया , हिंदुस्तान को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए ,सही मायने में पहली लड़ाई उन्होंने ही छेड़ी थी। शहीद मंगल पांडे के बलिदान को ये देश कभी नहीं भूला सकता है।
प्रारंभिक जीवन
मंगल पांडे का जन्म 30 जनवरी 1831 को उत्तर प्रदेश में बलिया जिले के नगवा गाँव में हुआ था । इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था । ब्राह्मण घर में पैदा हुए मंगल पांडे को जीवन यापन के लिए अंग्रेजों की फौज में भर्ती होना पड़ा , और इसी वजह से सन 1849 में केवल 22 साल की उम्र में मंगल पांडे अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हुए थे ।
अंग्रेजों के प्रति विद्रोह
यह वो समय था जब ईस्ट इंडिया कंपनी के अत्याचार से हिंदुस्तान का हर एक व्यक्ति प्रताड़ित था, हिन्दुस्तानियों के अंदर दबी जुबान से अंग्रेजों के खिलाफ विरोध के बिगुल फूट चुके थे, परन्तु ये गुस्सा तब फूटा जब कंपनी ने सेना की बंगाल इकाई में ‘एनफील्ड पी.53’ राइफल में नई कारतूसों का प्रयोग प्रारंभ हुआ । इन कारतूसों को बंदूक में भरने के लिए मुंह से खींच कर खोलना पड़ता था ,और भारतीय सैनिकों के बीच ऐसी बात फैल गई कि इन कारतूसों को बनाने में गाय व् सूअर की चर्बी का इस्तेमाल होता है । और सब के दिमाग में ये बात बैठ गयी कि अंग्रेज भारतियों का धर्म भ्रष्ट करना चाहते हैं , क्योंकि ये हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए हरम था ।
राइफल छीनने को लेकर अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन की हत्या कर दी
९ फरवरी १८५७ को जब ‘नया कारतूस’ सेना में बांटा गया तब शहीद मंगल पांडे ने उस कारतूस को लेने से मना कर दिया । इसका परिणाम ये हुआ कि अंग्रेजों ने उनके हथियार व् वर्दी छीन लिये जाने का हुक्म दे दिया । परन्तु शहीद मंगल पांडे ने अंग्रेजों के इस आदेश को नही माना , और फिर २९ मार्च सन १८५७ को शहीद मंगल पांडे की राइफल छीनने के लिये जब अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन आगे बढ़ा तो मंगल पांडे ने उस पर हमला कर दिया । मंगल पांडे ने मदद के लिए साथियों को पुकारा परन्तु अंग्रेजो के डर के कारण किसी ने उनकी मदद नहीं की, लेकिन मंगल पांडे ने हौसला दिखाते हुए बिना किसी डर के ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया ।
८ अप्रैल सन १८५७ को फांसी
शहीद मंगल पांडे ने ह्यूसन को मारने के बाद एक और अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब की भी हत्या कर दी, और फिर शहीद मंगल पांडे को अंग्रेजी सैनिकों ने पकड लिया । पकडे जाने के बाद हुआ ये कि उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलाकर ६ अप्रैल १८५७ को फांसी की सजा सुना दी । फैसले के अनुसार उन्हें १८ अप्रैल १८५७ को फांसी दी जानी थी, पर अंग्रेजी सरकार ने शहीद मंगल पांडे को निश्चित तारीख से दस दिन पहले ही ८ अप्रैल सन १८५७ को फांसी दे दी ।
खुद फांसी पर लटक गए थे मंगल पांडे तो भड़क उठी थी बगावत
शहीद मंगल पांडे तो सवयं फांसी पर लटक गये ,परन्तु उनकी इस कुर्बानी ने हिंदुस्तान की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा दिया था ।
शहीद मंगल पांडे की फांसी के एक महीने बाद ही १० मई सन १८५७ को मेरठ के सैनिक छावनी में भी विद्रोह शुरू हो गया , और यह विद्रोह पलक झपकते ही सम्पूर्ण उत्तर भारत में फैल गया, लेकिन इस विद्रोह को अंग्रेजों बलपूर्वक दबा दिया , लेकिन वो हिन्दुस्तानियों के भीतर
उनके खिलाफ भरे गुस्से को खत्म नहीं कर सके और फिर अंग्रेजो को कुछ समय के बाद हिंदुस्तान को छोड़ना ही पड़ा ।
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