भारतीय त्यौहारों को,
प्रकृति भी मनाती है|
है खिचड़ी तो देखिए,
कुहरा प्रभात लाती है||
गुड़, तिल लाई संग
पतंगे हवा उड़ाती है|
माघ मकर रवि अंग,
भीड़ चली आती है||
मन्द मधुर हवाओ से
चहुँ दिश महकाती है|
उमंग,उत्साह भरा मन,
गंग स्नान कराती है||
सक्रांति,बिहू,पोंगल,लोहडी
जन मानस यूं मनाती है|
स्नेह,माधुर्य,ओज रंग भर,
'अभिनव' मन को भाती है
रचयिता
श्री आनन्द नारायण पाठक 'अभिनव'
दारानगर-कौशाम्बी
प्रकृति भी मनाती है|
है खिचड़ी तो देखिए,
कुहरा प्रभात लाती है||
गुड़, तिल लाई संग
पतंगे हवा उड़ाती है|
माघ मकर रवि अंग,
भीड़ चली आती है||
मन्द मधुर हवाओ से
चहुँ दिश महकाती है|
उमंग,उत्साह भरा मन,
गंग स्नान कराती है||
सक्रांति,बिहू,पोंगल,लोहडी
जन मानस यूं मनाती है|
स्नेह,माधुर्य,ओज रंग भर,
'अभिनव' मन को भाती है
रचयिता
श्री आनन्द नारायण पाठक 'अभिनव'
दारानगर-कौशाम्बी
Comments
Post a Comment